संयुक्त नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
पिंजौर-कालका-परवाणू क्षेत्र 
          Town Official Language Implementation Committee                 
Pinjore-Kalka-Parwanu Region

अपेक्षित लक्ष्य

  • इस मंच के माध्यम से राजभाषा गतिविधियों को बढ़ावा देने संबंधी परामर्श देना।
  • राजभाषा सम्मेलन/अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलन/प्रशिक्षण कार्यक्रम करने हेतु प्रोत्साहित करना।
  • कंप्यूटर के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं सदस्य कार्यालय स्वयं अपने स्तर पर बढ़ावा देना।
  • राजभाषा प्रशिक्षण/टंकण/आंशुलिपि प्रशिक्षण के लिए शेष अधिकारियों/कर्मचारियों को भेजना और बैठकों में इसकी समीक्षा करना।

प्रत्येक सदस्य कार्यालय के अपने स्तर पर अथवा समिति के तत्त्वावधान में हिन्दी कार्यशालाओं/संगोष्ठीयो/सेमिनारों का आयोजन करने के लिए समिति उनका स्वागत करती है। नराकास की बैठकों में सदस्य कार्यालयों में उत्पन्न समस्याओं के समाधान खोजना, सर्वसहमति सहित बैठकों में नियमित रूप से चर्चा करना और उपाय सुझाना महत्वपूर्ण हैं। आज के सूचना प्रौधोगिकी प्रधान युग में राजभाषा की प्रगति और इसका प्रचार-प्रसार इस बात पर निर्भर है कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग निरंतर बढ़ता रहे। वर्तमान में विकासशील देशो में भी शासकीय, शैक्षणिक, मानव जनसेवा केन्द्रों, दूरदर्शन, रेडियो तथा वाणिज्य केन्द्रों में कंप्यूटर के माध्यम से हिन्दी भाषा का संप्रेषण इसकी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। हिन्दी की प्रगति की दिशा में सूचना प्रौद्योगिकी और इसके विभिन्न रूपों – जैसे वेबसाइट ब्लॉगिंग, औडियो एवं विडिओ कंटेन्ट आदि अत्याधिक महत्वपूर्ण है। सूचना-प्रेषण के इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों की कल्पना में तेज़ी और सुगमता एवं आपसी वार्तालाप और संवाद के माध्यम से हिन्दी के प्रसार में वृद्धि हुई है। हिन्दी 11 प्रदेशों और 3 संघ-शासित प्रदेशों की प्रथम राजभाषा है। हमारे संविधान में अनुच्छेद 351 में वस्तुत: हिन्दी और विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं में पास्परिक वार्तालाप एवं संप्रेषण की परिकल्पना की गयी है। इसी उद्देश्य से भाषायी एकता तथा सद्भाव से राष्ट्र की भौगोलिक और भावनात्मक अखंडता सुनिश्चित हो सकती है। हमारी राजभाषा-नीति उदार, सहिष्णु, लोकतांत्रिक और भाषा निरपेक्ष है। उसमें देश के सभी भाषाओं के लिए सम्मान के भाव अन्तरनिहित है। ऐसी परिस्थितियों में हिन्दी और अन्य प्रान्तीय भाषाओं में समन्वय, पूरक और पोषक का संबंध होना स्वाभाविक और तर्कसंगत है। बोलचाल और कामकाज हिन्दी के स्वरूप में प्रान्तीय भाषाओं के शब्दों को अत्मसात करते हुए केन्द्रीय राजभाषा हिन्दी और राज्यों की विभिन्न राजभाषाओं में आपसी नज़दीकियाँ और सद्भाव निश्चित रूप से बढ़ेगा।